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आचार्य श्रीराम शर्मा >> सफलता के सात सूत्र साधन

सफलता के सात सूत्र साधन

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4254
आईएसबीएन :0000

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विद्वानों ने इन सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है, वे हैं- परिश्रम एवं पुरुषार्थ ...

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पुरुषार्थी बनें और विजयश्री प्राप्त करें


वेद भगवान का कथन है-

कृत मे दक्षिणे हस्ते, जयो मे सव्य आहितः।
गोजिद् भूयासमश्वजिद् धनंजवो हिरण्यजितः।।

हे मनुष्य ! तू अपने दाहिने हाथ से पुरुषार्थ कर बाएँ में सफलता निश्चित है।गोधन, अश्वधन, स्वर्ण आदि को तू स्वयं अपने परिश्रम से प्राप्त कर।

सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक तथा आध्यात्मिक क्षेत्र में मानवीय सफ़लताओं कीसंभावनाएँ इतनी अधिक हैं कि उनका—उल्लेख नहीं हो सकता। अपनी शक्तियों को विकसित करके मनुष्य अपनी भौतिक उन्नति कर सकता है। जो वस्तु इन सबके लिएअपेक्षित है वह है मनुष्य का पुरुषार्थ। अपनी शक्तियों की पहचान और उनका सदुपयोग। जहाँ मनुष्य के पुरुषार्थ ने साथ दिया है, वहाँ अनेकविघ्न-बाधाओं में, तीव्र विरोधों में भी उसकी जीत हुई है। पुरुषार्थ सफलताओं का जनक है।

दृढ़, प्रयत्न और सतत् उद्योग करते रहने वाले पुरुष सिंहों ने इस संसार मेंविलक्षण क्रांतियाँ की हैं। परिस्थितियाँ उन्हें किसी भी तरह दबा नहीं पाईं। दुःख, निराशा, अनुत्साह उनकी कभी राह नहीं रोक पाए। एकाकीपुरुषार्थियों ने वह कर दिखाया है, जो अनुत्साहग्रस्त कोई बड़ा राष्ट्र भी नहीं कर पाया है।

ऐसे उदाहरणों से संसार में पुस्तकों के पन्ने पर पन्ने भरे पड़े हैं। आलस्य औरअकर्मण्यता के द्वारा मनुष्य दीन-दुर्बल और पतित बना रहे यह एक अलग बात है, किंतु उसका आत्मविश्वास यदि जाग जाए, उसकी सोई हुई शक्तियाँ उमड़ पड़ेतो मनुष्य न रहकर अपने ज्ञान और अनुभव का लाभ छोड़ जाता है।

लक्ष्य पूरा करने के लिए अपनी समस्त शक्तियों द्वारा परिश्रम करना ही पुरुषार्थकहलाता है। मनुष्य अपने परिश्रम और व्यवसाय से देव को भी दबा देने की शक्ति रखता है। बाधाएँ पड़ने पर भी वह खेद नहीं कर सकता--हतोत्साहित होकरनहीं बैठता। पुरुषार्थी पुरुष ही इस संसार के सुखों का उपभोग करते हैं। कायर और कापुरुष तो अपनी दीनता का ही रोना रोते रहते हैं।

पुरुषार्थ मनुष्य को कर्म की ओर प्रवृत्त करता है, इससे साधन हीनता मिटना स्वाभाविकहै। पर पुरुषार्थविहीन मनुष्य को तो विपत्तियाँ ही घेरे रहती हैं। उनकी उन्नति का मार्ग रुक जाता है, गौरव समाप्त हो जाता है। मनुष्य का भाग्यबदल देने की सारी शक्ति पुरुषार्थ में भरी है। उद्योगशील पुरुष के पीछे लक्ष्मी घूमा करती है, इस कथन में कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है। कैसी भीकठिन समस्या आती है, उससे डरिए नहीं, लड़ने की शक्ति पैदा कीजिए आप जरूर सफल होंगे।

असहाय और निराशा के क्षणों में मनुष्य का साथ पुरुषार्थ ही देता है। मनुष्य धैर्यधारण करे और विपरीत परिस्थिति में भी खोज करे तो सहारे का मार्ग मिल जाता है। सच्चाई और ईमानदारी का प्रस्ताव वह ठुकराए नहीं तो अपनी समस्याओं कासुधार जल्दी ही कर लेता है। उन्नति के पथ पर आरोहण के इच्छुक मन वाले, धैर्यवान् व्यक्ति आपत्तियों को दूर भगाने में अपने पुरुषार्थ का आश्रयलेना उचित मानते हैं। पुरुषार्थ ही शूरवीरों का सच्चा सहायक होता है।

शारीरिक, आर्थिक या सामाजिक जैसी भी स्थिति में उलझनें, विपत्तियाँ और परेशानी आतीहों, उनसे लाभ मनुष्य अपने परिश्रम और पुरुषार्थ के द्वारा उठा सकता है। कठिनाइयाँ सदैव मनुष्य का मार्ग दर्शन करती हैं, किंतु इसके लिए उसेधैर्यवान् होना आवश्यक है। कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति नहीं आई तो मनुष्य घबड़ा जाएगा और जो कुछ भली परिस्थितियाँ हैं उन्हें भी खो बैठेगा। यदिहमारे सामने सफलता के लिए सारे दरवाजे बंद हो चुके हैं, तो भी देखिए कहीं प्रकाश की एक किरण जरूर दिखाई देगी। जब तक शरीर का एक भी तंतु सजीव है, तबतक हार मानना ठीक नहीं। सच्चे मनुष्य मृत्यु की आखिरी साँस तक परिस्थितियों से लड़ते हैं। हम भी फिर हार क्यों मान बैठे ?

भाग्य और कुछ नहीं-कल का पुरुषार्थ ही आज का भाग्य बनता है। इस तरह मनुष्य अपनेप्रबल पुरुषार्थ द्वारा भाग्य को भी बदल सकता है, इसमें कुछ भी संदेह नहीं।

आत्मिक शक्तियों को जगाना मनुष्य का प्रमुख धर्म है। आत्मा के गहन अंतराल में वहशक्तियाँ भरी हैं, जिनका यदि उत्कर्ष हो जाए तो मनुष्य असामान्य परिणाम इसी जीवन में उपलब्ध कर सकता है। सच्चाई, ईमानदारी और कर्मठता को जगाकरमनुष्य इन शक्तियों की समीपता अनुभव कर सकता है। पुरुषार्थ के लिए सर्वोपरि साहस चाहिए तथा अच्छे-बुरे कैसे भी परिणाम को सहने के लिएउच्चकोटि का धैर्य चाहिए। ऐसा जीवन किसी का बन जाए तो कठिनाइयाँ उसका रास्ता न रोक सकेंगी। वह दिनों दिन सफलताओं की ओर बढ़ता ही चला जाएगा।

अपनी शक्तियों का सदुपयोग मनुष्य को स्वयं करना चाहिए। दूसरों के भरोसे बैठनानिकम्मापन है, ईश्वर की सहायता माँगने का अधिकार तब मिलता है, जब हम स्वावलंबी हों। उन्हीं की। भगवान मदद भी करता है, जो अपनी मदद खुद करतेहैं। अपने पाँवों खड़ा होकर ही मनुष्य उन्नति कर सकता है। पुरुषार्थ मनुष्य जीवन की पहली आवश्यकता है। इसके बिना किसी तरह की उन्नति संभव नहींहै। संघर्ष और सफलता का संबल पुरुषार्थ ही है।

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    अनुक्रम

  1. सफलता के लिए क्या करें? क्या न करें?
  2. सफलता की सही कसौटी
  3. असफलता से निराश न हों
  4. प्रयत्न और परिस्थितियाँ
  5. अहंकार और असावधानी पर नियंत्रण रहे
  6. सफलता के लिए आवश्यक सात साधन
  7. सात साधन
  8. सतत कर्मशील रहें
  9. आध्यात्मिक और अनवरत श्रम जरूरी
  10. पुरुषार्थी बनें और विजयश्री प्राप्त करें
  11. छोटी किंतु महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें
  12. सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है
  13. अपने जन्मसिद्ध अधिकार सफलता का वरण कीजिए

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